( तर्ज - भले वेदांत फ्छाने हो ० )
बने मस्ताने अपने में
मजा करते हैं दुनिया में ॥ टेक ॥
किसदिन गादी - तकिया बैठे ,
पडे बिछाने में ।
किसदिन बैठे नदी - किनारे ,
सुख हरियालीमें ॥ १ ॥
किसदिन शालू जरी दुशाला ,
फूँवर कानों में ।
किसदिन ओढे मृगचर्मासन ,
बैठे धुनियामें ॥२ ॥
किसदिन सँगमें राव साहु हैं ,
बडे बडेसे ग्यानी ।
किसदिन भू खेतका मेला ,
सँगमें लोग दिवाने || ३ ||
किसदिन हरी - भजनकी बूटी ,
नाचे मंदिरमें ।
किसदिन तुकड्या बना दिवाना ,
बैठा है रँगमें ॥४ ॥
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